From Our Readers

Dr. Arun K. Upadhyaya, Associate Professor/HOD, Political Science, P.G. College, Sakaldiha, Chandauli (U.P.)

Modern society is a restless society. Inspite of its tremendous achievements, we see a crisis of human values which has led to discontent all around. Under the western materialistic approach to life, even the institutions of marriage and family seem to be crumbling. The unbearable load of our so called advancements in all spheres of life has taken away love and compassion from our lives. Hence an endeavour to return to spirituality through the “Bhakti Marg” which is obeisance to the epitome of love Shri Krishna seems to be the panacea to the restlessness of our souls. Gora Chand Ras Chandrika is a quarterly Hindi spiritual magazine edited by Dr. Prabha Sharma, a multifaceted personality who has been fulfilling this need of mankind suitably for quite some time. Another feather is added to her cap with the launching of website gorachand.com. Science to the aid of humanity via spirituality is a noble and commendable job done by her for which she deserves our praise and gratefulness. I congratulate her on this memorable occasion and wish her success in her quest for truth and beauty which are essentially divine. The magazine promises us a world free of hatred; the love that encompasses all irrespective of manmade distinctions.

वर्तमान समाज निश्चित ही अपनी उपलब्धियों पर गर्व कर सकता है| हमने प्रकृति पर एक सीमा तक विजय प्राप्त कर ली है और सुदूर पर्वतीय स्थलों से लेकर समुद्र की गहराईयों तक अपनी जीत का उद्घोष किया है| भौतिक साधनों की प्रचुरता उसके जीवन को नई ऊंचाइयां प्रदान कर रही हैं| उसने चंद्रमा तथा मंगल जैसे ग्रहों को भी मानवीय पहुंच में ले लिया है| किन्तु इन ऊंचाइयों को प्राप्त करने के बाद भी अशांत, अधीर, अस्थिर चित्त और भयाक्रांत है, जिसका कारण है उसके जीवन से प्रेम का लुप्त हो जाना| आध्यात्मिक प्रेम शाश्वत है और वो भी गौरसुन्दर की भक्ति से प्राप्त है| राधाकृष्ण की आराधना से ही सुगम्य है| भक्तिमती, विदुषी, कवयित्री रूप में बहुमुखी प्रतिभा की धनी डॉ. प्रभा शर्मा द्वारा सम्पादित गोराचाँद रसचंद्रिका त्रैमासिक पत्रिका इस सात्विक अन्वेषण पर आधारित आनंद की प्राप्ति में कारगर रही है| इसने जन मानस में एक नई ऊर्जा का संचार कर प्रेमाधारित समतामूलक समाज की रचना में योगदान दिया है| नवीन तकनीक पर केंद्रित पद्धति द्वारा इस मार्ग को और भी अधिक सुगम, व्यापक और ग्राह्य बनाने के सद्प्रयास की मैं सराहना करता हूँ एवं gorachand.com website निर्मिति के इस सुअवसर पर अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ| धन्यवाद|

‘गीत चाँदनी’ कविता-संग्रह के अवलोकन का अवसर प्राप्त हुआ। विदुषी कवयित्री प्रभा शर्मा की अनुपम कृतियों की श्रृंखला में यह अगला सोपान है। कृतियों से उनके वैचारिक वैभव, कार्मिक सौंदर्य, लोक जीवन का गहरा अनुभव, संवेदनशीलता के साथ एक मंगलमय पुनीत प्रेम की सघन अनुभूति का परिचय मिलता है। भाव जगत में प्रेम को सर्वोत्तम अनुभूति की संज्ञा दी गई है। यह प्रेम कहीं पुरुषोत्तम कृष्ण के प्रति समर्पित होकर आध्यात्मिक भी हो सकता है, तो कहीं जागतिक प्रेम का सौंदर्य विशेष लिए हुए भी।

वेदोपनिषद, सत्शास्त्र, भारतीय महापुरुष तथा संत ज्ञानी समुदाय आदिकाल से विशुद्ध प्रेम की महिमा का गायन करते रहे हैं। ‘ढ़ाई आख़र प्रेम का पढ़ै सो पंडित होय’ कबीरदास की यह उक्ति भी इसी सत्य की पुष्टि करती है। यह प्रेम ‘ईश्वर के अमल अंश’ मनुष्य के भीतर छुपी अनंत संभावनाओं को अभिव्यक्त करने में समर्थ है। आनंद मनुष्य का सहज स्वभाव है। प्रेम उसकी चिरकालिक माँग है और सनातनता की, नित्य होने कि उसे युगों से चाहत है। वेदों ने कहा- मनुर्भवः अर्थात् मनुजता के शिखर पर, चरमावस्था पर पहुँच कर ही अतीन्द्रिय प्रेम और आनंद को पाया जा सकता है। इस प्रेम को अनुभूत कर मनुष्य अनंत, विराट, अभय, अजर, अमर, देहाभ्यास से मुक्त होकर ब्रह्मरूप एक महत्तम सत्ता होकर समूचे विश्व के लिए उपयोगी बन जाता है। लघुता से विराटता की यात्रा ही तो मनुष्यता है। बूँद से समुद्र हो जाना ही तो निर्वाण की अवस्था है। पुरुषार्थ चतुष्टय की सिद्धि के बाद पंचम पुरुषार्थ ही तो तो निरतिशय आह्लाददायिनी प्रेमाभक्ति है।

आज संचार की, सूचनाओं की, अभियांत्रिकीय, उपनिवेशवादी प्रगति व सभ्यता ने भले ही हमें भौतिकीय सुख -सुविधाओं की उपलब्धि, देह के रख-रखाव, उसे सुंदर कोमल बनाने, सजाने-संवारने के नुस्खे और कला तो प्रदान किए हैं, किंतु ‘अविनाशी तु तद् विधि’ जैसा आत्मा की नित्यता का, शाश्वतता का, उसकी अजरता-अमरता का अनूठा वेदांतिक दर्शन उनके पास नहीं है। अतः कवयित्री का सांस्कृतिक बोध संकेत रूप में हमें जीवन के अवसाद, मोह, तनाव, भाग-दौड़, शंका, संदेह आदि दुविधाओं का नाशकर हृदय में अपरिमित रस घोलने वाले दिव्य प्रेम के अभ्यास की ओर प्रेरित करता है।

‘गीत चाँदनी’ की एक-एक कविता काव्य सौंदर्य से युक्त रुचिकर और पठनीय है। भाषा भावों का कुशलता से अनुगमन करती है। यह उत्कृष्ट शब्दों का चयन तथा हृदय की वास्तविक अनुभूति का सम्मोहन-विमोहन ही है। कवयित्री प्रभा शर्मा इस सृजन के लिए बधाई की पात्र हैं। मैं उनकी इस साहित्यिक-आध्यात्मिक यात्रा की निरंतरता और सफलता हेतु अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ।

Dr. Madhur Bihari Goswami, Associate Professor : Hindi Literature, SBJ College, Bisawar, Hathras

आदरणीय बहन, सादर नमस्कार ! आपके द्वारा प्रकाशित और सम्पादित गोरा चाँद रस चन्द्रिका कृष्ण भक्ति को समर्पित एक अच्छी पत्रिका है | कंप्यूटर और मोबाइल के इस युग में साहित्यिक पत्रिका को, व्यक्तिगत प्रयत्नों से प्रकाशित करना अत्यंत श्रमसाध्य कार्य है | पत्रिका और वेबसाइट के द्वारा समाज में सत्साहित्य का प्रसार हो, उदात्त मूल्यों कि प्रतिष्ठा हो, मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें |

Dr. Prayag Narayan Mishra, Managing Director, Goshala, Maricopa, Arizona

“Gora Chand Ras Chandrika” is a spiritual magazine edited by Dr. Prabha Sharma. It is furthering the cause of Krishna Prema- love of godhead, targeted to every one. If you want to taste the love of Krishna, please invite your friends to read it. Although, it pertains to Nimbarkacharya’s Sri Sampradaya, it takes nectar from all devotees of Krishna such as Saint Kabir. I should congratulate Dr. Prabha Sharma and her team for their dedication, hard work and coordination.

Your humble servant,

In service of servants and disciples of Srila Prabhupada

Sri Dharmendra Sharma, Gopalgarh Ashram

जय श्री कृष्ण ! श्री नित्यनिकुंज की सेवा में आपके द्वारा रचित पुस्तिका गोरा चाँद बहुत ही सारगर्भित है | नित्ययुगल सरकार का आशीर्वाद आप पर बना रहे और हमें इस पुस्तिका के द्वारा प्रभुप्रेम की अनुभूति का लाभ प्राप्त होता रहे | इन्हीं कामनाओं के साथ जय श्री राधे !

Anil Mishr, Varishth Patrakar, 689 Peeli Kothi Vanshigauhra, Mainpuri, UP

डा० प्रभा शर्मा के सम्पादन में संगृहीत ‘गोराचाँद रसचन्द्रिका’ के दिग्दर्शन का सौभाग्य मिला । गौरीय वैष्णव परंपरा से संम्बद्ध श्रीकृष्ण प्रेम विरह मे आप्लावित सह मैगज़ीन अपने आप मे एक अद्भुत पत्रिका है ।

आध्यात्मिक पत्रिका का संपादन कोई सहज बात नहीं है । गोराचाँद के नाम से निकल रही पत्रिका में सबसे पहले नाम को लेकर हैरत में पड़ गया । परन्तु डा० प्रभा शर्मा जी ने अपने संपादकीय में ही इस संशय को दूर कर दिया । गोराचाँद तो उन चैतन्य महाप्रभु का नाम है जिनका जन्म बंगाल की पुण्यवती नवद्वीप नगरी में पण्डितप्रवर जगन्नाथ मिश्र के यहाँ हुआ था । आज जिस वृन्दावन में हम भगवान कृष्ण के दर्शन करने जाते हैं, उसकी खोज महाप्रभु गौरांगदेव ने ही किया था । गौरांग महाप्रभु ने प्रेमरस को सबसे महत्त्वपूर्ण बताते हुये कहा था जिसके जीवन में प्रेम नहीं है, उसे ‘जीवन’ कहना ही पाप है ।

“प्रेम ही सब प्राणियों के पुण्य-पथ का द्वार है ।

प्रेम से ही जगत् का होता सदा उपकार है ।।

जिस हृदय में प्रेम का उठता नहीं उद्गार है ।

व्यक्ति वह निस्सार है, वह मनुज भू का भार है ।।”

देश मे अधिकांश लोग कृष्ण के जीवन चरित्र के बारे मे जानते हैं परंतु कृष्ण विरह प्रेम के रस की त्रिवेणी महाप्रभु ने ही बहाई जिसका आधा विश्व उस रस का पान कर रहा है । चैतन्य महाप्रभु का चरित्र प्रेम रस का अथाह सागर है । चाहे उसे कितना भी पी ले कितना भी उलीच ले, उस अगाध सागर की एक बूँद भी कम नहीं हो सकती । इस अद्भुत पत्रिका का संपादन भी वही कर सकता है जो स्वयं कृष्ण विरह रस में डूबा हुआ हो । डा० प्रभा शर्मा एक श्रेष्ठ विदुषी, भक्ति रस मे डूबी कवयित्री, विभिन्न भाषाओं, विभिन्न गुणों और विभिन्न विधाओं की अभिज्ञा हैं । ‘गोराचाँद रसचंद्रिका’ एक एैसी आध्यात्मिक कृति है जिसे यदि आप पढ़ेंगे तो कृष्ण विरह रस आपके हृदय में अवस्थित होता चला जाएगा । कलिकाल मे इस स्तर की पत्रिकाएँ प्रकाशित करना बेहद साहसिक कार्य है जिसके लिये डा० प्रभा शर्मा की जितनी सराहना की जाय कम है । इसका मनन अनुशीलन सबके लिये बहुत उपयोगी और कल्याणकारी सिद्ध हो सकता है । यह पत्रिका कृष्णप्रेम की प्राप्ति के मार्ग को प्रशस्त करती सिद्ध होती है । फ़क़ीर के जीवन में तीन बातें अवश्य आती है- इल्लत, ज़िल्लत और क़िल्लत । उसी तरह जिसे अपना जीवन सर्वोत्कृष्ट, आनंदमय, सौन्दर्यमय, भावमय तथा प्रेममय बनाना है तो उसे कृष्ण प्रेम में बिलखना, तड़फना और छटपटाना जरूर पड़ेगा । ‘श्रीगोराचाँद रसचन्द्रिका’ आपकी कृष्ण भक्ति सुदृढ़ बनाने में बहुत सहायक सिद्ध होगी क्योंकि पत्रिका का प्रत्येक पृष्ठ प्रेम रस में पूरी तरह डूबा हुआ है । पत्रिका के प्रकाशन के लिये एक बार पुन: डा० प्रभा शर्मा को हार्दिक शुभकामनाएँ ।

माँ सरस्वती की श्रेष्ठ पुत्री प्रभा शर्मा द्वारा रचित ‘गीत चाँदनी’ देखने का अवसर मिला । छायावाद से प्रेरित सम्पूर्ण काव्यांजलि में जयशंकर प्रसाद, निराला, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के दर्शन होते प्रतीत होते हैं । चैतन्य महाप्रभु के अनंत प्रेम में गुँथी इस काव्यमाला का एक एक मनका समुद्र की अतल गहराइयों से निकला रत्न प्रतीत होता है । चाँदनी के स्वभाव मे ही शीतलता होती है । ‘गीत चाँदनी’ भी तन और मन को जहाँ शीतलता प्रदान करती है वहीं समाज के सामने अनेकानेक प्रश्नों की ओर भी संकेत करती है । नारी के शोषण और उत्पीड़न के विरुद्ध प्रभा जी ने बहुत कुछ कहने और उसके गौरव को संरक्षित रखने का प्रयास किया है । भक्ति और प्रेम के रस मे डूबी हर कविता हर पंक्ति नवसृजित समाज को  कड़ा संदेश देती प्रतीत होती है ।

‘विरह यवनिका’ विरह की अनूठी रचना है ।

शरत्चंद्र की मौन तृषा यह,

विरहोज्जवल गीत सुनाती सी,

वसंत मालिका पराग धूलि से,

प्रियतम का चित्र बनाती सी ।

विरह को बड़े सहज तरीक़े से प्रस्तुत किया है प्रभा जी ने । ‘जा मनचोरा’ कृष्ण राधा दिव्य प्रेम के रस को उजागर करती प्रतीत होती है । ‘शुभ्र माधवी’ रचना में तो लेखिका ने कमाल कर दिया है । ‘तुम एक आराधना’ अद्भुत रचना है जिसे विभिन्न वस्त्रों से सुसज्जित करके प्रभा जी ने गढ़ा है । ‘कौन तुम’ छायावाद के कोष की अमूल्य निधि है । ‘अक्सर’, ‘इस बार कुछ’, ‘प्रस्तरमूर्ति’, ‘सुबह’, ‘तलाश’ रचनाएँ अपने आप में अद्भुत हैं । ‘उसे पता है’ कविता एक क्रान्तिकारी रचना है जिसमें नारी के स्वाभिमान को पूरी शक्ति के साथ जाग्रत किया है । ‘सच का सच’ तो सत्य का यथार्थ प्रस्फुटन है । ‘तो क्या हम इसे ख़ता कहें’, ‘अहसास एक सागर का’ अमूल्य रचनाएँ हैं पर ‘कौन अहो यह’ तथा ‘मंजुल मधुर निताई’ भक्ति भाव से भरपूर रचनाएँ है । राधारमण जी को समर्पित ‘मकरंद का मधु घोल’ रचना है । ‘गोकुलपति कुलतिलकं’ एक ऐसा गीत है जिसको गाकर मानवता धन्य धन्य हो जाती है । आरतियों की श्रृंखला मे प्रभा जी द्वारा रचित ‘श्रृंगार आरती’ सर्वश्रेष्ठ आरती है ।

श्री राधारंजनं नीरजवदनं

मकरकुंण्डलं उत्पलगंधं

जय जय जय श्री बंकिमनयनम्

‘शयन आरती’, ‘विरहेगौरांगो’, रस सागर मे डूबे भक्तों के लिये एक वरदान की तरह है ।  यह काव्य संग्रह गीत गोविन्द एवं दशावतार स्त्रोत्र की तरह एस अमर काव्य संग्रह बन गया है, जिसमें कहीं जयदेव की झलक मिलती है तो कहीं महादेवी के दर्शन होते है । काव्य कृतियों के इतिहास मे “गीत चाँदनी” का सदा स्मरण किया जायेगा । यह मात्र कविताओं का संकलन नही है अपितु दिव्य प्रेम की सघन अनुभूति है । इस ऐतिहासिक कृति के लिये डा० प्रभा शर्मा जी को हृदय की अतल गहराइयों से शुभकामनाएँ देता हूँ ।

Dilip Mishra, Upadhyaksh- Hindi Sahitya Sabha, Gwalior

सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक साहित्कारा एवं कवयित्री डा० प्रभा शर्मा द्वारा रचित ‘गीत चाँदनी’ भक्तिरस और प्रेमरस की अनुपम कृति है। डा० प्रभा वस्तुतः हिंदी के छायावादी युग की आधिकारिक कवयित्री व प्रेमाभक्ति की अद्भुत शिल्पी हैं। इस काव्यसंग्रह में उन्होंने अपनी लेखनी से विलक्षण रस बरसाया है। उनका यह संग्रह वस्तुतः हमें चैतन्य महाप्रभु की श्रीकृष्ण के प्रति निष्काम भक्ति और प्रेम सुधा रस का पान कराता है। ‘गीत चाँदनी’ प्रेम के वैराग्य और समर्पण भाव का प्रगटीकरण ही है। यह एक काव्यमयी प्रेमाञ्जलि भी है, जो अपनी शब्द विन्यासिनी साधिका के समर्पण भाव को भी प्रस्तुत करती प्रतीत होती है। देखिए- ‘जा मनचोरा’ में लेखिका किस सौम्यता के साथ नायिका के अर्पण भाव को अभिव्यक्त करती हैं-

जा मनचोरा जा जा रे छलिया

क्यों रचता मधु चाटु वचना ?

जा चारूहासा जा तद समीपा

हरे जो सुंदरा विरह तुम्हारा ।

पगे प्रीति में किस मधुरांगी

निमील रसालस सुर्ख ये नयना ?

निकाम रात्रि में विहरे किस संग

कर ज्वलित मन मम अति मृदुला ?

जा मनचोरा जा जा रे कितवा…

‘गीत चाँदनी’ शृंगार, वैराग्य तथा भक्ति की दुर्लभ कृति है। लेखिका विलक्षण प्रतिभासंपन्न कवयित्री होने के साथ-साथ साधिका भी हैं, वह भी श्री राधा-कृष्ण के रूपमाधुर्य की! उनकी इस साधना के दर्शन उनकी कविता ‘कौन तुम’ में होते हैं। उसमें इन्होंने शृंगार रस के द्वारा प्रेम-सौंदर्य का बेमिसाल दर्शन पाठकों को करवाया है-

नीले झीन वसन में लिपटी

मदभरी जूही की काया ।

ज्यूँ शशांक में विलास करती

भृंगी की मोहक माया ।

सौरभ भीने मलय वसंत में

तरुवर की सुन्दर लतिका हो ।

या हिमशिखरों में लहराती

चंचल उन्मत्त विपाशा हो ।

‘गीत चाँदनी’ के अध्ययन के बाद मुझे छायावाद की महादेवी जी की याद आये बिना नहीं रहती। प्रभाजी महादेवी जी की आधिकारिक प्रतिनिधि कवयित्री हैं। यह काव्य संग्रह उनका अतुलनीय ग्रंथ है। हार्दिक बधाई!